दुर्घटना
एक कृति दुर्घटनाग्रस्त हो गई।
यह सम्भावी था क्योंकि
इसे लिखा था एक आज के कवि ने
जो आज का होकर भी
कल ही का था
और जिसे रोका था
उसकी बुद्धि ने बार-बार
परन्तु हृदय के हाथों होकर लाचार
राजी हो गया था वह
कृति को यात्रा में अकेली छोड़ देने के लिए।
अब अकेली थी इसलिए
एक कृति दुर्घटनाग्रस्त हो गई।
चलते समय टोका था कवि ने कृति
को
कि अभी छपी नहीं किसी पत्रिका-
समाचार पत्र में तुम्हारी समीक्षा
अजानी हो तुम अभी
तो धकिया दी जाओगी तुम कहीं
कठिन हो जाएगी पहचान भी तुम्हारी
विमोचित भी तो नहीं हुई हो
किसी मंच पर
अत: योग्य कहाँ हो अभी यात्रा के?
पर मानिनी
मान न सकी
एक संभावना, योग्यता, गुण-रूप का
सम्बल समेटे चली
पर धूल-धूसरित होना जैसे उसकी नियति थी
इसलिए एक कृति दुर्घटनाग्रस्त हो गई।
उस कृति को यह भी कहाँ पता था
कि इस समाजवाद में जिसमें सबका
कोई न कोई समाज है
व्यक्तिवाद कहाँ है?
तो स्थिति विज्ञेय की है
अज्ञेय की नहीं जो
अकेली होकर भी रहती है विशिष्ट
तो इसलिए उसने बनाया न कोई संगी न साथी
और न किसी समाज
या खेमे से जुड़ी
और ऐसा करते समय
उसने सोचा भी न होगा
कि जो भी होता है समाज से विद्रोही
हो जाती है कोई न कोई
दुर्घटना उसके साथ
संभवत: इसीलिए एक कृति दुर्घटनाग्रस्त हो गई।
उसने सोचा होगा
कि अनास्था के तिमिरावरण में भी
आस्था होगी उद्भासित
सत्य और सुन्दर का
स्थापक पूजित होगा कवि
और रचना की योग्यता होगी तुला
स्थापना की, ग्राह्यता की
पर चूँकि इस कठिन समय में
उसने सोचा होगा ऐसा
इसलिए एक कृति दुर्घटनाग्रस्त हो गई।
२९ सितंबर २००८ |