अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में हर्ष कुमार की रचनाएँ-

कविताओं में-
कल्पना और विश्वास
दंगे
फ़ासला- एक पीढ़ी का
मैं और मेरा भगवान
संध्या का सूर्य
सभ्यता की पहचान
समुद्र की लहरें

  फ़ासला- एक पीढ़ी का

हम अपने बच्चों में देखते हैं
अपना बचपन, बचपन के दिन
हमारी दूरी होती है उनसे
एक पीढ़ी की।
आयु में ही नहीं, सोच में भी।

हमारे माँ-बाप हम से बूढ़े हैं
एक पीढ़ी दूर हैं।
वो उनमें अपना बचपन नहीं ढूँढ़ते
देखते हैं दुनिया को
इनकी नज़र से
कितनी सुंदर है ये
कितने खुश रहते हैं।
दूरी दो पीढ़ी की नहीं रहती
ख़त्म हो जाती है।
दूरी बिलकुल नहीं रहती।
-बच्चा बूढ़ा एक समान

२४ मार्च २००८

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter