दंगे
जब-जब दंगे होते हैं
हम नंगे होते हैं।
जब-जब दंगे होते हैं
हमारे ऊपर से
'समाज' की चादर
खींच ली जाती है।
हमारे 'सभ्यता' के कपड़े
नोच लिए जाते हैं।
हम नंगे हो जाते हैं
जब-जब दंगे होते हैं
हम अपनी 'समाज' की चादर
फाड़ देते हैं।
अपने 'सभ्यता' के कपड़े
नोच कर उतार फेंकते हैं
नंगे हो जाते हैं
जब-जब दंगे होते हैं
हम नंगे होते हैं।
२४ मार्च २००८ |