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संप्रेषण
शब्द दूरबीन अथवा सूक्ष्मदर्शी यंत्र हैं,
जिनके द्वारा हम तुम्हें देखते हैं।
नींव में हैं चक्षु प्रेम अश्रु,
जिसपर हम सभी का अस्तित्व टिक सका है।
शब्दों को सीढ़ियाँ बनाकर,
हम आपकी ऊँचाई तक पहुँचते हैं।
शब्द न होते हम गाते कैसे,
शब्द बिना दुनिया बनाते कैसे,
शब्दजाल में बिंधा, विश्व और अपना जीवन।
शब्द काठ के कपाट,
अथवा खिड़कियों के अपारदर्शी काँच नहीं हैं,
जिनके द्वारा
हम तुम्हें देखने में असमर्थ हों।
२५ फ़रवरी २००८
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