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जैसी करनी, वैसी भरनी
पचास वर्ष पूर्व,
मैं था तीस का, औऱ बेटा तीन का,
मैं श्रीमती जी को सावधान किया करता था,
'बाबा' बहुत छोटा है,
घर के आँगन या चार दीवार से,
वह अकेले ही निकल नहीं जाए, रखना तनिक ध्यान,
सभी काम छोड़ श्रीमती जी उसका ख़याल रखती थीं।
और आज,
धाड़की पर जाने से पूर्व,
बेटा, अपनी श्रीमती को करता है आगाह,
'बाबा' की उम्र बहुत अधिक हो गई,
आँगन या घर की चार दीवारी को,
अकेले ही लाँघकर ओझल न हो जाएँ
रखना बहुत ध्यान
यह पराया देश है, हो न कहीं बवाल?
जीवन कथा जाए नहीं बरनी,
जैसी करनी, वैसी भरनी।
१५ जून २००९ |