मिट्टी की गंध
पहली-पहली बरसात का वो आनंद
कौन भूल सकेगा मिट्टी की वो भीनी-भीनी गंध
रफ़्तार की इस ज़िंदगी में इंसां व्यस्त हो गया है कितना
हर तरफ़ मशीनी अंदाज़ जिसका अभ्यस्त हो गया इतना
समय नहीं अब उसके पास दे इस भीनी गंध पे ध्यान
बस सुबह और शाम काम ही काम में फँसी है उसकी जान
गाँव की उस शांत ज़िंदगी को छोड़
इंसां भाग रहा है आज शहर की ओर
उस भीनी-भीनी गंध का गाँव में जो समाँ था
कल्पना से हो चला है परे वहाँ जो आसमाँ था
शहरों में हैं आजकल सीमेंट या डामर के रास्ते
माना कि ये ज़रूरी हैं सब जीने के वास्ते
उस भीनी-भीनी गंध की कमी तो खलती रहेगी
कुछ पाना कुछ खोना ये रीत यों ही चलती रहेगी
कल कारख़ानों ने भी वातावरण पर किया है आघात
प्रदूषण फैला कर उस भीनी गंध का कर दिया है घात
घात ऐसा कि अब खुले में भी हम डाल सकते नहीं कोई झूला
लाखों को डसने वाला भोपाल कांड क्या अब तक है कोई भूला
भ्रष्टाचार में रत जब सबके दिल ही हों काले
भीनी गंध का आनंद लेने का समय कोई कैसे निकाले
वातानुकूलित नाकों का इस खुशबू से क्या है लेना देना
गलती से पाला पड़ जाए तो कहेंगे 'व्हाट ए नॉनसेंस स्मेल' है ना
हर कोई यहाँ भाग रहा है रुपये की झंकार के पीछे
दौलत की ख़ातिर गिर गया है अपने आदर्शों से नीचे
किसे है उस भीनी गंध को सूँघने की फ़ुर्सत
वैसे भी सबको मिले, नहीं ऐसी सबकी होती किस्मत
आतंकवाद के घिरते साये इंसां को कर गए हैं इतना विरक्त
घूमती है नज़र जिधर भी दिखलाई देता है रक्त ही रक्त
डर के इस माहौल में मिट्टी की वो गंध अपने आयाम है खोती
कितना ही अच्छा होता यदि सबको अच्छे बुरे की पहचान होती
ये सब थे कुछ कारण जिनकी वजह से इंसां हो रहा है
उस भीनी गंध से वंचित
अब भी कुछ नहीं बिगड़ा चाहे तो
सब कुछ बदला जा सकता है न होना पड़े चिंतित
बस अपने जीवन में अपने आदर्शों को अपनाइए
बदले में जनाब मिट्टी की वही महकदार खुशबू पाइए
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