अनुभूति में
दीपक
राज कुकरेजा की रचनाएँ-
नई कविताएँ-
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दिल के चिराग
दूसरों के अँधेरे ढूँढ़ते लोग
शिखर के चरम पर
सपने तो जागते हुए भी
कविताओं में-
एक पल में
कविता
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दूसरों के अँधेरे ढूँढ़ते लोग
कहीं खुश दिखने की
तो कहीं अपना मुँह बनाकर
अपने को दुखी दिखाने की कोशिश करते लोग
अपने जीवन में हर पल
अभिनय करने का है सबको रोग
अपने पात्र का स्वयं ही सृजन करते
और उसकी राह पर चलते
सोचते हैं 'जैसा में अपने को दिख रहा हूँ
वैसे ही देख रहे हैं मुझे लोग'
अपना दिल खुद ही बहलाते
अपने को धोखा देते लोग
कभी नहीं सोचते
'क्या जैसे दूसरे जैसे दिखना चाहते
वैसे ही हम उन्हें देखते हैं
वह जो हमसे छिपाते
हमारी नज़र में नहीं आ जाता
फिर कैसे हमारा छिपाया हुआ
उनकी नज़रों से बच पाता'
इस तरह खुद रौशनी से बचते
दूसरों के अंधेरे ढूँढ़ते लोग
16 दिसंबर 2007
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