अनुभूति में
दीपक
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तिजोरी भरी दिल है खाली
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कविता
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तिजोरी भरी दिल है खाली
बंद तिजोरियों को सोने और रुपयों की
चमक तो मिलती जा रही है
पर धरती की हरियाली
मिटती जा रही है
अंधेरी तिजोरी को चमकाते हुए
इंसान को अंधा बना दिया है
प्यार को व्यापार
और यारी को बेगार बना दिया है
हर रिश्ते की कीमत
पैसे में आँकी जा रही है
अंधे होकर पकड़ा है पत्थर
उसे हाथी बता रहे हैं
ग़रीब को बदनसीब और
और छोटे को अजीब बता रहे हैं
दौलत से ऐसी दोस्ती कर ली है की
इस बात की परवाह नहीं कि
इंसान के बीच दुश्मनी बढ़ती जा रही है
16 दिसंबर 2007
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