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अनुभूति में दर्पण चंडालिया की रचनाएँ—

छंदमुक्त में-
बगीचे की शिकायत
रेत के घुँघरू
शून्य से एक तक का सफर
सबसे सस्ती मौत
सियाही का बाजार

  शून्य से एक तक का सफर

कितना कठिन होता है
सफर- शून्य से एक तक का!
जब देख आए हो तुम
अनंत किसी और ही दुनिया का।
बस एक चुटकी,
खत्म तिलिस्म
और फिर शून्य पर तुम।

सफर जैसे जंग में खाली करवाए मकानों को
फिर से घर की उम्मीद देना।
जो खुद रेत और वक्त के हाथों से
फिसली जा रही है
ऐसी काजल बारिश रातों को मुस्कराती सहर देना!
पहले सीखा कलकत्ता को कोलकाता
अब कोलकाता को फिर कोई नया शहर कहना।

सबकी शिकायत है
कि अब वो पहले सी मुस्कुराहट नहीं है
रोज आईने में तैयारी करना
फिर किसी गाने पे रो देना!

कैसा जुल्म है कि जो चाहो नहीं मिलता
मुझे सिर्फ तेरी खरोचें दिखती हैं
अपना रिसता खून नहीं दिखता।
मैं तुमसे हर रोज बस यहाँ-वहाँ छिपता फिर रहा हूँ
क्या तुम्हें मैं नेक इरादों में भी नहीं दिखता?

खैर,
पाना फिर खो जाना खुदको
लगा रहता है।
अपने इंकलाब पर खुद ही शक करना
लगा रहता है।
रोशनी से रहना थोड़ा कटे-कटे
आँखों में बादलों का मौसम
लगा रहता है।
चुनो सजा या माफी तुम जो भी
उसके लिये
सोच लेना तुम्हें भी वही मुकर्रर होगी।
ये पहली सीढ़ी है दोस्त मेरा हाथ थामो
अभी बोहोत शून्य और बोहोत एक बाकी हैं
और शून्य से एक तक का सफर
लगा रहता है।

१ दिसंबर २०२२

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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