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बगीचे की शिकायत
कुछ शिकायतें हैं मेरे बगीचे की,
हथेलियों में चेहरा छुपाए गुमसुम बैठा है,
तो आज वही लाए हैं...और कुछ खास नहीं।
पत्तियों को धूप से इश्क तो रहता ही होगा
यूँही थोड़े ही फूल की कमर पर
जब धूप की उँगली फिसल जाए!
तो तौबा ओस बरसती है रातों में।
फिर भी कुछ तितलियाँ हैं
जो इनसे नाराज रहती हैं
होंगे कुछ पुराने धागे
बाँध के रखते होंगे उन्हें शायद।
तो सवाल ये
कि फिर धूप और पत्तियों की कहानी का क्या?
कोई भरमाता पत्तियों को,
"तुम्हारी लकीरों में तो आधा चाँद नहीं बनता..."
तुमने चिढ़ कर
धूप को ये बात बता दी थी एक दिन
उसी रात
उस चाँद पर
तुम्हारे हाथों की लकीरें माँड आई थी धूप।
"जो तितलियों का खाली घोंसला
मैं अपनी शामों से भर दूँ तो...
जो तुम से छिन जाती है, उन पनाहों का घर दूँ तो...
तेरी साँस की गर्मी सुनूँ
तेरे कंधे पर अपना सर दूँ तो...
जो तेरे सफर की थकान है
इक चम्पी से छू कर दूँ तो!"
ये धूप भी ना ...न जाने क्या-क्या सोचती होगी!
कुछ वक्त माँगा है दोनों ने
पूरा बगीचा चुप है
"तुम कुछ वक्त बाद
सुन पाओ फैसला तो सुन लेना...
मैं तो तुम्हारी लकीरें चाँद पर उकेरता रहता हूँ... बेवजह..."
अरे...मैं नहीं...
ये धूप भी ना... न जाने क्या क्या सोचती होगी।
१ दिसंबर २०२२ |