अनुभूति में
डा. भूपेन्द्र कुमार दवे की रचनाएँ—
शिशुगीत-
चिड़िया रानी
नाक
भालू
गीतों में—
तुम चाहो तो
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तुम चाहो तो
तुम चाहो तो
मंज़िल मेरी दूर हटा दो
मैं जाऊं जिस ओर पथिक बन
उस पथ पर तुम शूल बिछा दो
और सफ़र का क्लेश बढ़ाने
गर्म सुलगती रेत बिछा दो
उफ़ न करूँगा, कुछ न कहूँगा
गर तुम मेरे साथ रहो तो।
तुम चाहो तो
तट को मुझसे दूर हटा दो
और नाव को जर्जर करने
लहरों में तूफ़ान जगा दो
ओर छोर ही ना हो जिसका
सागर को उतना फैला दो
उफ़ न करूँगा, कुछ न कहूँगा
गर तुम मेरे साथ रहो तो।
तूम चाहो तो
पल–पल पीड़ा क्लेश बढ़ा दो
सुख की घडियाँ क्षीण बनाकर
दुख को मेरा मीत बना दो
साँसों के झुरमुट के भीतर
आहों का अंबार लगा दो
उफ़ न करूँगा, कुछ न कहूँगा
गर तुम मेरे साथ रहो तो।
तुम चाहो तो
जीवन मेरा व्यर्थ बना दो
आशा के सब दीप बुझाकर
धर्म कर्म का अर्थ मिटा दो
विकट विकराल समस्याओं से
मेरे जीवन को उलझा दो
उफ़ न करूँगा, कुछ न कहूँगा
गर तुम मेरे साथ रहो तो।
तुम चाहो तो
मेरे काँधों बोझ बढ़ा दो
मेरे तन मन की ठठरी पर
अभिलाषा की अर्थी लिटा दो
चिता जलाकर मेरी इच्छा
चुन–चुन कर सब भस्म बना दो
उफ़ न करूँगा, कुछ न कहूँगा
गर तुम मेरे साथ रहो तो।
२४ मई २००६ |