अनुभूति में
भास्कर चौधरी
की रचनाएँ-
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चुनाव (दो
कविताएँ)
जय बोलिये स्त्री विमर्श की
(तीन कविताएँ)
बुट्टू
छंदमुक्त में-
इन दिनों
ईमानदार थे पिता
तीन छोटी कविताएँ
पिता का सफर
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जय बोलिए स्त्री
विमर्श की
एक
नंगी है
उस स्त्री की पीठ
लेखक का दाहिना हाथ
उसकी पीठ पर है
स्त्री की कविताओं में
पुरुषों को गालियाँ वर्जित नहीं हैं
लेखक ने अभी-अभी घोषणा की है –
उस स्त्री की कविताएँ महान हैं
कार्यक्रम खत्म हो चुका है
लेखक की आखें उस स्त्री को ढूँढ रही हैं
दो
कार्यक्रम के बाद
खाने का कार्यक्रम है
खाने के पहले शराब का इंतज़ाम है
गोल मेजों के चारों ओर
लेखकगण विराजमान हैं
छ:-छ: कुर्सियाँ हैं
दूसरे और चौथे पर
स्त्रियाँ विद्यमान हैं
कम उम्र लड़कियाँ और लड़के
परोस रहे हैं शराब
चर्चा है
ठहाके हैं
मयखाने में सब बराबर हैं!
तीन
जो ना पीये शराब
तो पिछड़ा है
जो टकराए जाम पर पाम
स्त्री विमर्श का हक
केवल और केवल उसी का है ..
जय बोलिए स्त्री विमर्श की !
९ जून २०१४
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