अनुभूति में
भास्कर चौधरी
की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
चुनाव (दो
कविताएँ)
जय बोलिये स्त्री विमर्श की
(तीन कविताएँ)
बुट्टू
छंदमुक्त में-
इन दिनों
ईमानदार थे पिता
तीन छोटी कविताएँ
पिता का सफर
|
|
इन दिनों
इन दिनों
जिन्हें मैं याद करता हूँ सबसे ज़्यादा
जिनकी जिक्र के बगै़र मेरी कोई कहानी
खत्म नहीं होती
चाहे सुनने वाले मेरे पीछे कहते हों
कि यह मैं दुहरा चुका हूँ पहले भी कई बार
फिर भी हो ही जाते हैं पिता उपस्थित
मेरे आंगन में पंद्रह वर्शीय मीठे नीम के पेड़ की तरह
जिसकी छाया में रोज एक गिलहरी आती है
मुँह नाक साफ करती
चावल या गेहूँ के चंद दाने चुगती है
पिता
मुझसे दो सौ किलोमीटर की दूरी पर रहते हैं
सड़सठ वर्ष के हैं
मेरे बचपन के दिनों के बाद
आज सबसे ज़्यादा अच्छे लगते हैं -
आज जबकि मैं एक पिता हूँ
मेरी एक सात साल की बिटिया है
७ अप्रैल २०१४
|