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पहाड़-
दो कविताएँ
एक
एक पहाड़ यह है
कंधों को दूर तक फैलाये
मौसम की बर्फ़ को
अपनी हरियाली पर झेलता हुआ
यह पहाड़ वह है
अपनी हरियाली में आकण्ठ डूबा
मौसम के सामने कंधे झुकाये
बर्फ़ को ज़मीन पर धकेलता हुआ
तुम्हें कैसा पहाड़ बनना है?
दो
अपनी ज़मीन पर
मजबूती से कदम रख
आदमी उठता है सतह से ऊपर
तो बनता है एक मजबूत पहाड़
मजबूत पहाड़ ही महान होता है
देता है दिल में जगह
लोगों को उठाता है अपने कंधों पर
पहाड़ की तरह
मजबूत आदमी ही
खुशगवार मौसम के लिये
फैलाता है हरियाली
२४ मार्च २०१४ |