अनुभूति में
अशोक भाटिया की
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आज़ादी
मुझे बोलने दिया जाए
मुझे क्रोध करने दिया जाए
मुझे स्त्री और देश से
प्रेम करने दिया जाए
मुझे फेफड़े–भर
ऑक्सीजन लेने दी जाए
मुझे हर किताब पढ़ने का
अधिकार दिया जाए
मुझे इतिहास जानने दिया जाए
मुझे सदियों से बनायी गई
स्याह सुरंगों से बाहर निकलने दिया जाए
मुझ अच्छे–बुरे लोगों से
मिलने दिया जाए
मुझे सौन्दर्य को महसूस करने दिया जाए
मुझ पर जीने की शर्तें न लगायी जाएँ
मुझे जिंदगी से सुख छीनने दिया जाए।
२३ अप्रैल २०१२ |