अनुभूति में
अशोक भाटिया की
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एकजुट
आकाश में
नहीं है कोई लकीर
सारे तारे मिलकर देते हैं
रोशनी और सौंदर्य और कल्पना
सबके लिए
प्रकृति में
नहीं है कोई लकीर
कितने पेड़ जननी है पृथ्वी
और वे सब रचते हैं
हरियाली और छाया और फल
सबके लिए
सूर्य के लिए
नहीं है कोई बंधन
वह कितनी ऊर्जा की सुइयाँ
चुभोता है अलसाई ज़मीन को
और जनता है जीवन
सबके लिए
बादल नहीं मानते
प्रांत या दिशा का बंधन
वे जब बहते हैं
तो बरसते हैं सब ओर सुदूर
उर्वरा करते हुए ज़मीन को
सबके लिए
हम भी देश और दुनिया को
पेड़ और सूर्य
आकाश और बादल की तरह
सींच सकते हैं।
२३ अप्रैल २०१२ |