अनुभूति में आशीष भटनागर की
रचनाएँ —
छंदमुक्त में-
साँस
प्यार
प्रिय मन
डोरेस्वामी की वीणा सुनते ही
उत्तरकाशी १९९१ |
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प्रिय मन
नीम की पत्तियाँ
जोर–से
सरसराई,
रसोई में
कोई गलास लुढ़का
और अखबार फड़फड़ाने के साथ
झल्लाहट से
किसी ने दरवाजा खोला।
ना
हवा नहीं,
तू है
और नाराज है।
कमरे में इधर–उधर
उड़ रहे हैं कागज़,
एक
जो मेरे मुँह पर आ चिपका है
उस पर लिखा है
"प्रिय मन,
चाह कर भी आज
तुझे खत नहीं लिख पाया।"
९ सितंबर २००२ |