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अनुभूति में आशा सहाय की रचनाएँ

छंदमुक्त में-
आहत युधिष्ठिर
खोलो मन के द्वारों को अब
निर्वाक
प्रथम सावन
मैं सड़क हूँ

 

प्रथम सावन

सूखे पत्ते भी नाच उठे धरती के
उन हरी पत्त्तियों के हर्षण
नर्तन का तो अब मत पूछो-
सूखी टहनी, शाखाओं में
नवजीवन का संचार हुआ।
करुणा की आँखें भींग चलीं
नभमंडल जल से आद्र हुआ
वर्षा का फिर संघात हुआ।

उत्तप्त गगन भूतल व्याकुल
बावला अरे!
जब भेद भेद वायुमंडल
सागर पर पहुँचा घूम-घूमकर मतवाला
घिरनी सा गर्जन तर्जन औ
नर्तन करता यह वातचक्र बढ़ता आता।

पुरवैया का बन घोर शोर
शत-शत सहस्त्र पादप वृन्दों को
तोड़ फोड़ झकझोर पुनः
करता निनाद चहुँ ओर रोर
तूफान प्रबल बन।

घोर-घोर घनघोर मेघ
एकत्र और फिर तितर बितर
हो महामेघ फिर महावायु
फिर छिहर-छिहर सीकर बन
प्लावित धरती इनसे
करती अनाथ शिशुओं को जब
उन्मादिनी
विप्लव की बन सूत्रधार
वर्षा बनकर झर धार धार।

धरती पर है यह महामिलन
नभ के दूतों का महाप्रलय।

२० अप्रैल २०१५

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