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अनुभूति में अरविंद कुमार की रचनाएँ

छंदमुक्त में-
आग का दरिया
ज़िंदगी
मैं और मेरी कविता
यह शहर बेजुबान क्यों?

शहर के बीच

 

मैं और मेरी कविता

मैं जब बहुत अकेला होता हूँ
अपने आप से बातें करता हूँ
खोल के रख देता हूँ
अपना अन्तर्मन
कभी हँसता हूँ
कभी रोता हूँ
कभी मुस्कराता हूँ
और कभी बहुत गुस्सा हो जाता हूँ
बैठे-बैठे

अचानक रोशनी का रंग बदल जाता है
और खिड़की से कूद कर आ जाती है एक कविता
मेरे सामने
और फुदकने लगती है
मेरी उँगलियाँ पकड़ कर

मैं पूछता हूँ, तुम कौन हो ?
वह बताती है, मैं तुम्हाली दोछ्त हूँ !
मैं पूछता हूँ, अब तक कहाँ थी ?
वह हँसती है, मैं पैदा हो लही थी तुम्हाले भीतल, धीले-धीले !
मैं पूछता हूँ, रहोगी न अब, चलोगी न मेरे साथ?
वह मुस्कराती है
और शरमा जाती है, अगल तुम चाहोदे!

मैं जब बहुत अकेला होता हूँ
अपनी कविता से बातें करता हूँ

१७ फरवरी २०१४

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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