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मैं और मेरी कविता
मैं जब बहुत अकेला होता हूँ
अपने आप से बातें करता हूँ
खोल के रख देता हूँ
अपना अन्तर्मन
कभी हँसता हूँ
कभी रोता हूँ
कभी मुस्कराता हूँ
और कभी बहुत गुस्सा हो जाता हूँ
बैठे-बैठे
अचानक रोशनी का रंग बदल जाता है
और खिड़की से कूद कर आ जाती है एक कविता
मेरे सामने
और फुदकने लगती है
मेरी उँगलियाँ पकड़ कर
मैं पूछता हूँ, तुम कौन हो ?
वह बताती है, मैं तुम्हाली दोछ्त हूँ !
मैं पूछता हूँ, अब तक कहाँ थी ?
वह हँसती है, मैं पैदा हो लही थी तुम्हाले भीतल, धीले-धीले !
मैं पूछता हूँ, रहोगी न अब, चलोगी न मेरे साथ?
वह मुस्कराती है
और शरमा जाती है, अगल तुम चाहोदे!
मैं जब बहुत अकेला होता हूँ
अपनी कविता से बातें करता हूँ
१७ फरवरी २०१४ |