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अनुभूति में अर्पण क्रिस्टी की रचनाएँ

छंदमुक्त में-
कब्रिस्तान
ख़्वाब
दाग अच्छे हैं
सुखाने के लिए टांगा है दिल को

 

सुखाने के लिए टाँगा है दिल को

सुखाने के लिए टाँगा है दिल को

चीजों को गीला नहीं छोड़ते,
जल्दी फट जाती हैं वरना

सेहेन में कड़ी धूप बन के निकली हैं
तेरी गैर-मौजूदगी…
बोतल को खुला छोड़ने से जैसे इत्र उड़ जाता हैं,
वैसे ही यह उडा ले जाये इस गीलेपन को
तो बात बने

वैसे अच्छा किया तुमने,
जो जाते जाते धो गए इस दिल को
फिर से चमक उठे शायद
इस्त्री कर के रख दूँगा फिर,
ताकि सिलवटें मिट जाये

वैसे तेज़ हवाएँ तो चल रही हैं,
पर, पिन लगा रखी है तेरे ख्यालों की…

अब,
बे-दिल भी कहते हैं लोग अक्सर

पर,
किस किस को बतायें,
कि…
सुखाने के लिए टाँगा हैं दिल को

२१ नवंबर २०११

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