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अनुभूति में अर्पण क्रिस्टी की रचनाएँ

छंदमुक्त में-
कब्रिस्तान
ख़्वाब
दाग अच्छे हैं
सुखाने के लिए टांगा है दिल को

 

कब्रिस्तान

यहाँ सूखने लगे हैं पेड़ जज़्बातों के,
और मुरझाने लगे हैं इख़लाक के पौधे

लक्ष्मी के हवन से निकले
धुएँ ने अँधा कर रखा है
इन दौड़ते हुए मुर्दों को

इंसानों को कुचलते हुए
जो भागते रहते हैं
कभी न ख़त्म होने वाली दौड़ में…

बनवाई हैं महँगी कब्रें मुर्दोंने,
दरवाज़े और खिडकियोंवाली,

हाँ,
यह कब्रिस्तान है

कुछ इंसानों को सुना था कल
नम आवाज़ में
बातें करते हुए,

"दोस्त, यहाँ पर कभी,
एक शहर बसता था"

२१ नवंबर २०११

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