अनुभूति में विवेक चौहान
की रचनाएँ-
अंजुमन में-
कभी पास अपने
गगन पूरा तड़पता है
गमों का दौर है जो अब
नजर मुझसे मिला लो तुम
न मेरा दिल सँभलता है |
|
कभी पास अपने
कभी पास अपने बुला कर तो देखो
नजर से नजर तुम मिला कर तो देखो
कहाँ तक चलोगी, अकेली यहाँ पर
कदम संग मेरे बढ़ा कर तो देखो
न मैं संग दिल हूँ, न मैं यों फरेबी
मुझे आप अपना, बना कर तो देखो
कहर ढा रही हैं, निगाहें तुम्हारी
पलक को उठा औ' गिरा कर तो देखो
गली प्यार की अब, महकने लगी है
कभी घर से बाहर, भी आकर तो देखो
सुनो नींद में भी हँसोगी सनम तुम
नयन में मुझे तुम, छुपा कर तो देखो
तुम्हें क्या पता है, हसीं तुम हो कितनी
ये रुख चाँद से तुम, मिलाकर तो देखो
१ अप्रैल २०१७ |