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अनुभूति में विवेक चौहान की रचनाएँ-

अंजुमन में-
कभी पास अपने
गगन पूरा तड़पता है
गमों का दौर है जो अब
नजर मुझसे मिला लो तुम
न मेरा दिल सँभलता है

 

गमों का दौर है जो अब

गमों का दौर है जो अब, न मुझको तुम भुला देना
अगर मैं कुछ भी भूलूँ, याद तो मुझको दिला देना

नहीं इतनी खबर मुझको कि मैं अब हूँ कहाँ पर सुन
अगर मंजिल भटक जाऊँ, मुझे रस्ता दिखा देना

कि माँगा है सदा मैंने, तुम्हें अपनी दुआओं में
अगर तुम हो सनम मेरे, मुझे अपना बना देना

गुलाबों के शहर में भी, सनम तेरी महक आये
कहीं भी मैं मरूँ मुझको, तू बाँहों में सुला देना

झुकी नजरों पे यह दुनिया, सुनो शक खूब करती है
निकलते ही नजर घर से, सनम तुम अब उठा देना

कि मेरी याद में तेरी, ये आँखें नम न हो जाएँ
कोई तस्वीर तू मेरी, किताबों में छुपा देना

जहाँ पर महफ़िलें आकर, सजा करतीं वफाओं की
वहाँ जाकर तू मेरी ये ग़ज़ल सबको सुना देना

१ अप्रैल २०१७

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