अनुभूति में विवेक चौहान
की रचनाएँ-
अंजुमन में-
कभी पास अपने
गगन पूरा तड़पता है
गमों का दौर है जो अब
नजर मुझसे मिला लो तुम
न मेरा दिल सँभलता है |
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गगन पूरा तड़पता है
गगन पूरा तड़पता है, मुहब्बत की
जवानी में
नयन आँसू बहाते रोज, यादों की रवानी में
बिछड़ कर भी भुला पाया, नहीं अब तक सनम तुमको
न आया है न आयेगा, कोई अपनी कहानी में
गिरा करते हैं जब आँसू, तुम्हारी याद में हमदम
कि लगती आग है गौरी, महज दो बूँद पानी में
लगा कर रोज सोता हूँ, मैं सीने से तुम्हारा खत
दिया तुमने जो था मुझे प्यार की अपनी निशानी में
किसी इक रोज तुमने जो, छुआ मुझको था रस्ते में
निशां बाकी अभी भी है, मेरी कॉपी पुरानी में
सनम तुम उस जमाने में, कयामत ही कयामत थे
नया था प्यार हमने भी, दिया था दिल नदानी में
१ अप्रैल २०१७ |