अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में वीरेन्द्र अकेला की रचनाएँ-

अंजुमन में-
अदावत दिल में
दिन बीता
पहले तेरी जेब
महकते गुलशनों में
सूर्य से भी पार
 


 

 

महकते गुलशनों में

महकते गुलशनों में तितलियाँ आती ही आती हैं
अगर दिल साफ़ रक्खो नेकियाँ आती ही आती हैं

मैं उससे कम ही मिलता हूँ, सुना है मैंने लोगों से
ज़ियादा मेल हो तो दूरियाँ आती ही आती हैं

सुबह से मनचले यों ही तो मंडराते नहीं रहते
ये पनघट है यहाँ पनहारियाँ आती ही आती हैं

मैं कहता हूँ सियासत में तू क़िस्मत आज़मा ही ले
तुझे दुनिया की सब मक्कारियाँ आती ही आती हैं

कुसूर उसका नहीं, गर वो ख़ुदा ख़ुद को समझता है
जो दौलत हो तो ये ख़ुशफ़हमियाँ आती ही आती हैं

अगर बत्तीस हो सीना, पुलिस के काम का है तू
ज़माने भर की तुझको गालियाँ आती ही आती हैं

‘अकेला’ हक़बयानी ने सड़क पर ला दिया तो क्या
भले कामों में कुछ दुश्वारियाँ आती ही आती हैं

१ मई २०१७

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter