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अनुभूति में डॉ. योगेन्द्र दत्त शर्मा की रचनाएँ-

अंजुमन में-
कंचन की खंजन की
तू क्यों सूली पर चढ़ा
मेहराब थी जो सिर पे
वो मन के कितना करीब था

  वो मन के कितना करीब था

वो मन के कितना करीब था, अब वो कितना दूर हुआ,
एक आईना पत्थर से टकराकर चकनाचूर हुआ।

मेरी शोहरत मुझसे भी दो-चार कदम आगे चलती,
जहाँ गया मैं, वहाँ-वहाँ मेरा किस्सा मशहूर हुआ।

सबसे अलग दमकता चेहरा, कैसा नूर बरसता था,
अलग-थलग पड़कर वह चेहरा बेरौनक, बेनूर हुआ।

जब तक मंज़िल की तलाश थी, तब तक था मासूम बहुत,
मंज़िल मिलते ही बनजारा, अब कितना मगरूर हुआ।

खरी सचाई ढो-ढोकर हम पिछड़े नए ज़माने में,
नए दौर में नकलीपन ही दुनिया का दस्तूर हुआ।

हम सीने में ज़ख़्म छिपाए थे बेहद बेफ़िक्र, मगर
धीर-धीरे ज़ख़्म हमारा बढ़कर अब नासूर हुआ।

दौलत मिलती, इज़्ज़त मिलती, शोहरत भी मिलती, लेकिन,
औरों की शर्तों पर जीना हमें कहाँ मंज़ूर हुआ!

५ अक्तूबर २००९

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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