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अनुभूति में डॉ. योगेन्द्र दत्त शर्मा की रचनाएँ-

अंजुमन में-
कंचन की खंजन की
तू क्यों सूली पर चढ़ा
मेहराब थी जो सिर पे
वो मन के कितना करीब था

  मेहराब थी जो सिर पे

मेहराब थी जो सिर पे, धमक से बिखर गई,
मीनार इस तरह हिली, बुनियाद डर गई।

हम सोचते ही रह गये, कैसे ये सब हुआ,
निकली कहाँ से बात, कहाँ तक ख़बर गई!

तुम क्या गए, शहर की ही रौनक हवा हुई,
पीली उदासियाँ थीं, जहाँ तक नज़र गई।

हमने तो हँस के हाल ही पूछा था आपसे,
इतनी-सी बात आपको इतनी अखर गई!

मैंने खुशी को पास बुलाया था प्यार से,
लेकिन 'वो' मेरे पास से होकर गुज़र गई।

अपनों की बात आपने समझी नहीं कभी,
ग़ैरों की बात कैसे जेहन में उतर गई!

५ अक्तूबर २००९

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