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अनुभूति में डॉ. योगेन्द्र दत्त शर्मा की रचनाएँ-

अंजुमन में-
कंचन की खंजन की
तू क्यों सूली पर चढ़ा
मेहराब थी जो सिर पे
वो मन के कितना करीब था

 

कंचन की, खंजन की
 

कंचन की, खंजन की देखी, देखी तन की सुंदरता,
हर सुंदरता देख चुके, तब देखी मन की सुंदरता।

हर चेहरा निस्तेज हुआ, प्रतिबिंब निरर्थकता ढोते,
कैसा रूप, कहाँ का दरपन, क्या दरपन की सुंदरता।

भीड़-भाड़, हलचल, कोलाहल, चमक-दमक, यह चहल-पहल
लेकिन तूने अभी कहाँ देखी निर्जन की सुंदरता!

सिर्फ़ खोखलेपन का जादू, सिर पर चढ़कर बोल रहा,
चकाचौंध के बीच खो गई इस जीवन की सुंदरता।

अपने मन में चीज़ों के प्रति कुछ लगाव तो पैदा कर,
अलगावों में कहाँ मिलेगी, अपनेपन की सुंदरता।

उसका रुकना, पीछे मुड़ना, आगे चलना, फिर रुकना,
कितनी मोहक लगती है उसकी उलझन की सुंदरता!

पके हुए बालों ने पूछा, थकी-थकी-सी आँखों से,
कहाँ झुर्रियों में डूबी है वह बचपन की सुंदरता!

५ अक्तूबर २००९

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