अनुभूति में
उमा प्रसाद लोधी
की रचनाएँ—
अंजुमन में-
आदर्शों की अर्थी
गीत में साँस
लज्जावती लजाई
सूरज तेरा ताप
हमने देखे
हैं
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आदर्शों की अर्थी
आदर्शों की अर्थी के सिरहाने बैठे हैं
मर्यादाएँ तोड़ सभी शरमाने बैठे हैं
रोना है तो तुम भी रो लो मौका अच्छा है
प्याज लगाकर हम आँसू बरसाने बैठे हैं
बहुत बढ़ चुकी हमसे सबके द्वारे की शोभा,
खिल-खिलकर थक गये आज मुरझाने बैठे हैं
आग लगाकर इंसानों की प्यारी बस्ती में
सरकारी दमकल से उसे बुझाने बैठे हैं
कद, काठी, क्षमता में सब हो केवल मतदाता
जाति धर्म के हम लेकर पैमाने बैठे हैं
मानव का बाजार भाव क्यों बढ़ता जाता है
प्रश्न यही उलझाकर हम सुलझाने बैठे हैं
मत पूछो क्यों लिये कटोरा जनता द्वार खड़ी
हम सुराज का अर्थ तुम्हें समझाने बैठे हैं
१ नवंबर २०२२
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