अनुभूति में
सुरेन्द्र चतुर्वेदी की रचनाएँ-
अंजुमन में-
अलग दुनिया से हटकर
एक लंबी उड़ान
खुदाया इससे पहले
जिस्म के बाहर
पंछियों का आना-जाना
बदन से हो के गुजरा
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खुदाया इससे पहले
खुदाया इससे पहले कि रवानी खत्म हो
जाए।
रहम ये कर मेरे दरिया का पानी खत्म हो जाए।
मैं ज़िंदा हूँ मुझे इस बात का या तो यकीं दे दे
वगरना अब ये मेरी बदगुमानी खत्म हो जाए।
हिफाजत से रखे रिश्ते भी टूटे इस तरह जैसे
किसी गफलत में पुरखों की निशानी खत्म हो जाए।
लिखावट की जरूरत आ पड़े इससे तो बेहतर है
हमारे बीच का रिश्ता जुबानी खत्म हो जाए।
लड़ा होगा भला कितना वो खुद से आदमी जिसकी
फकत बचपन बिताने में जवानी खत्म हो जाए।
मुझे खामोशियों ऐसे किसी इक लफ्ज में ढालो
जुबाँ पे जिसके आने से ही मानी खत्म हो जाए।
हजारों ख्वाहिशों ने खुदकुशी कुछ इस तरह से की
बिना किरदार के जैसे कहानी खत्म हो जाए।
२८ अप्रैल २०१४
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