अनुभूति में
सुरेन्द्र चतुर्वेदी की रचनाएँ-
अंजुमन में-
अलग दुनिया से हटकर
एक लंबी उड़ान
खुदाया इससे पहले
जिस्म के बाहर
पंछियों का आना-जाना
बदन से हो के गुजरा
|
|
बदन से हो के गुजरा
बदन से हो के गुजरा रूह से रिश्ता बना डाला।
किसी की प्यास ने आखिर उसे दरिया बना डाला।
उसे सोचूँ, उसे ढूँढूँ, उसे लिक्खूँ मुकद्दर में
फकत इसके लिए उसने मुझे तन्हा बना डाला।
मैं आँखें खोल दूँगा तो जुदा हो जाएगा मुझसे
यही इक खौफ था जिसने मुझे अंधा बना डाला।
तेरी आँखों में मैंने अश्क अपने क्या रखे तूने
समंदर को जरा सी देर में कतरा बना डाला।
कभी बादल, कभी बारिश, कभी उम्मीद के झरने
तेरे अहसास ने छू कर मुझे क्या-क्या बना डाला।
तेरी मौजूदगी ने जख्म पर जब उँगलियाँ रक्खीं
तो मैंने दर्द अपना और भी गहरा बना डाला।
खयालों में तेरे हाजी हुए हम एक दिन यूँ भी
मदीना दिल को, अपनी रूह को काबा बना डाला।
२८ अप्रैल २०१४
|