अनुभूति में सुल्तान अहमद की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
इन कूओं के पानी से
इसमें मानी क्या
गायब
तेरे माथे पे सलवट
वो आग फेंक
गये
अंजुमन में-
गजल ढूँढते हैं
मिले ने मिले |
|
तेरे माथे पे
सलवट
तेरे माथे पे सलवट है, नजर में बंदगी कम है,
मुझे लगता है तेरी जिंदगी अब तो बची कम है।
अभी साँसें भी हैं जिंदा, अभी आँखों में सपने हैं,
बहुत है बोझ सीने पर मगर शायद अभी कम है।
कभी लगता है दुनिया हो गई है एक जंगल-सी,
कभी लगता है मेरी आँख में कुछ रौशनी कम है।
वही दाने, वही पानी, वही पिंजरा, हटाओ भी,
मिले हैं सुख बहुत सारे मगर अब ताजगी कम है।
सभी बहरे नहीं हैं, दस्तकें देकर तो आखिर देख,
खुलेंगे दर कई लेकिन तुझे उम्मीद ही कम है।
अभी भी याद आते हैं फफोले पाँव के उसको,
अभी सीने में शायद राहरौ के बेखुदी कम है।
२९ जुलाई २०१३ |