अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में सुल्तान अहमद की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
इन कूओं के पानी से
इसमें मानी क्या
गायब
तेरे माथे पे सलवट

वो आग फेंक गये

अंजुमन में-
गजल ढूँढते हैं
मिले ने मिले

 

 

इन कूओं के पानी से

इन कूओं के पानी से क्या बुझ पाएगी आग ?
जंगल के सीने में जिस दिन लग जायेगी आग।

लावा इतना मत बनने दो ढाकर उस पर जुल्म,
धरती इक दिन फट जायेगी, बरसायेगी आग।

जीवन की खुशबू से खाली हो बैठे हैं काठ,
उनको अपने हाथों छूकर महकाएगी आग।

चाहे जितनी धूल हो उन पर चाहे जितना जंग
सान पे चढ़कर अगर न चमके चमकाएगी आग।

कोने में उनको फेंको या रक्खो हाथों हाथ,
किसमें कितना लोहा है ये बतलायेगी आग।

२९ जुलाई २०१३

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter