अनुभूति में सुल्तान अहमद की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
इन कूओं के पानी से
इसमें मानी क्या
गायब
तेरे माथे पे सलवट
वो आग फेंक
गये
अंजुमन में-
गजल ढूँढते हैं
मिले ने मिले |
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इन कूओं के पानी
से
इन कूओं के पानी से क्या बुझ पाएगी आग ?
जंगल के सीने में जिस दिन लग जायेगी आग।
लावा इतना मत बनने दो ढाकर उस पर जुल्म,
धरती इक दिन फट जायेगी, बरसायेगी आग।
जीवन की खुशबू से खाली हो बैठे हैं काठ,
उनको अपने हाथों छूकर महकाएगी आग।
चाहे जितनी धूल हो उन पर चाहे जितना जंग
सान पे चढ़कर अगर न चमके चमकाएगी आग।
कोने में उनको फेंको या रक्खो हाथों हाथ,
किसमें कितना लोहा है ये बतलायेगी आग।
२९ जुलाई २०१३ |