अनुभूति में
सत्यशील
राम
त्रिपाठी की रचनाएँ-
अंजुमन में-
अँधेरी रात में
एक हरक़त
कहीं पर कट रहे आराम
धीरे धीरे
न बजती बाँसुरी
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धीरे धीरे
करेगा जमीं को नमन धीरे धीरे
झुकेगा जमीं पर गगन धीरे धीरे
तपन भी बनी शीतलन धीरे धीरे
लगी जब किसी से लगन धीरे धीरे
बिगड़ जाएगा आकलन धीरे धीरे
मुखौटे का बढ़ता चलन धीरे धीरे
उतरने लगी है थकन धीरे धीरे
असर कर रही है छुअन धीरे धीरे
पिता, पेड़, पनघट, पवन धीरे धीरे
शहर ने उजाड़ा चमन धीरे धीरे
उधर से उछाला है बोसा किसी ने
इधर से उछलता ये मन धीरे धीरे
कलम माँगते प्यार तक आ गया है
कहीं माँग ना ले बदन धीरे धीरे
मिला प्यार से तो हुआ फायदा ये
हुए ऐब सारे हवन धीरे धीरे
वो पहले छुअन की चुभन याद आती
झुके थे तुम्हारे नयन धीरे धीरे
सही राह पर हम बढ़ें जो निरंतर
बढ़ेगा हमारा वतन धीरे धीरे
१ मई
२०२३ |