अनुभूति में
संजय विद्रोही की रचनाएँ-
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अपने जख्मों की
नींदों में चलने वाले
यों तो सीधा
सन्नाटे हैं
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यों तो सीधा
यों तो सीधा खड़ा हुआ हूँ
पर भीतर से डरा हुआ हूँ
तुमको क्या बतलाऊँ यारो
जिन्दा हूँ पर मरा हुआ हूँ
हँसना भूल गया हूँ अब तो
आँसू पीकर बडा हुआ हूँ
जी भर भर के कोसो मुझको
इस जीवन से भगा हुआ हूँ
अपना पता बता दो 'संजय'
मैं खत लेकर खडा हुआ हूँ
६ जुलाई २०१५ |