अनुभूति में
संजय विद्रोही की रचनाएँ-
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अपने जख्मों की
नींदों में चलने वाले
यों तो सीधा
सन्नाटे हैं
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नींदों में चलने
वाले
ये नींदों में चलने वाले
आगे नहीं निकलने वाले
सूरत क्या अब आईने भी
होंगे रूप बदलने वाले
सपने जाने कब आएँगे
छत पर रोज टहलने वाले
आँख दिखाएँगे हम ही को
खैरातों पर पलने वाले
हमको कौन सम्हाल सका है
हम हैं स्वयं सम्हलने वाले
६ जुलाई २०१५ |