अनुभूति में
पं. विद्यारतन 'आसी'
की रचनाएँ—
अंजुमन में—
क्या मालूम
कौन है
तेरी शफ़कत
रास्ता
राह नहीं थी इतनी मुश्किल
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तेरी शफ़कत
तेरी शफ़कत के साए साए हैं।
ये अलग किसको रास आए हैं।
रस्मे दुनिया निबाहने के लिए
लोग जबरन भी मुस्कराए हैं।
तुम दरख्.तों के फल भी साए भी
हम दरख्.तों के फल न साए हैं।
नामुरादी सी नामुरादी है
उनके घर से निरास आए हैं।
क्यों वे कहरो ग़ज़ब से बाज़ आएँ
हम मोहब्बत से बाज़ आए हैं।
दरमियाँ हममें और कुछ भी नहीं
एक दूजे को रास आए हैं।
लौट आना पड़ा ज़मीनों पर
आस्मां किसको रास आए हैं।
अपना दुखने पे याद आए हैं
हमने कितनों के दिल दुखाए हैं।
मेरा होना चाहते दुनिया
आप किस सिलसिले से आए हैं।
अपने शेरों में आज भी 'आसी'
जाने क्या–क्या समेट लाए हैं।
१६ मार्च २००६
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