अनुभूति में
पं. विद्यारतन 'आसी'
की रचनाएँ—
अंजुमन में—
क्या मालूम
कौन है
तेरी शफ़कत
रास्ता
राह नहीं थी इतनी मुश्किल
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क्या मालूम
किसको किसका है आसरा मालूम।
मुझको मालूम तुमको क्या मालूम।
सारी हमदर्दियाँ दिखावे की
यार लोगों का हौसला मालूम।
इसलिए आज तक नहीं देखे
ख्वाब होते हैं ख्वाब था मालूम।
जीने–जीने में फ़र्क होता है
ये हक़ीकत सभी को क्या मालूम।
आप इसां नहीं फ़रिश्ता हैं
आपको भूख प्यास क्या मालूम।
कौन–सा रूप कब दिखाती है
गर्दिशे वक्त तेरा क्या मालूम।
आप मेरी ज़ुबां न खुलवाएँ
सबको किरदार आपका मालूम।
हम तो रोज़े अज़ल से आसी हैं
आप क्या देंगे फ़ैसला मालूम।
तल्खो–शीरीं की बात करते हो
कितने लोगों को ज़ायका मालूम।
किससे अपना अता–पता पूछूँ
किसको मेरा अता–पता मालूम।
किसने देखा है मौत का तांडव
किसने देखा है ज़लज़ला मालूम।
ऐन पिछले पहर मरा पाया
नाम 'आसी' था, शख्स नामालूम।
१६ मार्च २००६
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