अनुभूति में
पं. विद्यारतन 'आसी'
की रचनाएँ—
अंजुमन में—
क्या मालूम
कौन है
तेरी शफ़कत
रास्ता
राह नहीं थी इतनी मुश्किल
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रास्ता
रास्ता मुख्तसर नहीं होता।
थक गया हूँ सफ़र नहीं होता।
लोग लोगों से कब नहीं मिलते
कब बिछड़ने का डर नहीं होता।
घर तो होता है दिल के रिश्तों से
ईंट गारे से घर नहीं होता।
लोग दरिया बहाए फिरते हैं
हमसे दामन भी तर नहीं होता।
डूब जाता है जिस सफ़ीने का
नाखुदा मोतबर नहीं होता।
जिनको पाने की धुन नहीं होती
उनको खोने का डर नहीं होता।
बेठिकानों के सौ ठिकाने हैं
बेठिकानों का घर नहीं होता।
ये मुक़ाम और मैं कहां 'आसी'
मेहरबां तू अगर नहीं होता।
१६ मार्च २००६
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