अनुभूति में
पंकज मिश्र वात्स्यायन की रचनाएँ—
अंजुमन में—
कहने को तो
नागयज्ञ होगा दोबारा
बसंत
श्मशान पर मेरा पता |
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बसंत
हिमानिल के प्रहारों से हुए घायल थे जो पत्ते
मिले मिटटी में मिटटी को गए जैवांश देकरके
विकल जो हो गए थे जीव कुहरे के कहर से और
बदन जो कँपकपाने लग गए थे शीत से डरके
सिमट करके शिशिर के शीत वाले बाण के कारण
दुबक करके छिपी घासों के मुरझाये हुए मुखड़े
उदित रवि देख मासांतर पे उदयांचल के मुख होकर
लिपट करके तपस किरणों से बाहों में सभी पिघले
प्रणय का देखिये फल ये मनोहर ऋतु सुहानी में
वनस्पतियाँ मगन हैं अपने प्रिय का स्नेह पा करके
कहीं सरसों के फूलों से कहीं बहुरंग पुष्पों का
किया श्रृंगार वसुधा ने मुदित होकर मगन होके
३० मार्च २०१५ |