अनुभूति में
निशेष जार तृषित
की रचनाएँ-
अंजुमन में-
उजले मुखड़े
कुहासा हो रहा
घर की मोटी चिड़िया
प्यार से दुश्मनी
बात पुरानी है |
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कुहासा हो रहा
कुहासा हो रहा अब तो घना है
यही तो रात की प्रस्तावना है
अगर चिड़िया नहाये रेत में तो
सुना है वृष्टि की संभावना है
न देखो यों मुझे पैदा हो हलचल
हृदय यह तरल पारे सा बना है
सुनेगा कौन उजले मन की बातें
यहाँ हर रहनुमा कालिख सना है
नहीं निभती असत के आचरण से
तभी तो मन हमारा अनमना है
१ फरवरी २०२३ |