अनुभूति में
निशेष जार तृषित
की रचनाएँ-
अंजुमन में-
उजले मुखड़े
कुहासा हो रहा
घर की मोटी चिड़िया
प्यार से दुश्मनी
बात पुरानी है |
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घर की मोटी चिड़िया
जब से घर की मोटी चिड़िया खा जाती है सारा दाना
छोटी चिड़ियों ने तो तब से भरा पेट क्या कभी ना जाना
खुद अपना भी पेट काटकर जिसका पेट भरा करते थे
दिन बरसाती जब भी आये उसने हम को न पहचाना
सिकुड़ा पेट पीठ से बोला मध्य हमारे अब ना कोई
मिलन हमारा अमर कर दिया तोन्दों ने ये जब भी ठाना
बिना पेटमें जाये लक्ष्मी कोई काम नही बनता है
अब तो सबके पेट बड़े है घर दफ्तर हो या हो थाना
तृषित न उनका हाल पूछना जिनके पेट गई ना रोटी
दिन गलते पिसते कटता है रातें रो या गाकर गाना
१ फरवरी २०२३ |