अनुभूति में
महेन्द्र हुमा की रचनाएँ-
अंजुमन में-
दुनिया से यार
बस्ती को आग
बाबा दादी
माँ ने रुई को घी बतलाकर
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बस्ती को आग
बस्ती को आग की ये कबा कौन दे गया
बुझती नहीं है आग, हवा कौन दे गया
इंसान की तलाश में बस्ती के लोग थे
इन बस्तियों को इतने खुदा कौन दे गया
सबका सफेद खून है, ये तो बताइये
उनकी हथेलियों को हिना कौन दे गया
लम्हों की साजिशें थीं जिन्हें माफ कर दिया
सदियों को इतनी सख्त सजा कौन दे गया
बेरोजगारी, दर्द, घुटन, टीस औ कसक
इन सबको मेरे घर का पता कौन दे गया
ऐ रहनुमाए मुल्क अगर दे सको जवाब
हिंदोस्तानियत को दगा कौन दे गया
परवाजे फिक्र, तर्जे़-बयां, नित नया निखार
ग़ज़लों की इस जमीं को ’हुमा‘ कौन दे गया!
२६ नवंबर २०१२ |