अनुभूति में
कलीम आनंद की रचनाएँ
अंजुमन में-
अब जो अंधे कुएँ में
गाँव में
चिलचिलाती धूप
सुलगती आग-सा
हवा मौसम
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सुलगती आग-सा
सुलगती आग-सा तन-मन हुआ
न जाने फिर कहाँ सावन हुआ।
भला कैसे दिखे अपनी शकल
पुराना, घर का अब दरपन हुआ।
दरो दीवार यूँ ख़ामोश हैं
विभाजित आज घर आँगन हुआ।
खिलौनों की दुकाँ को देखकर
मुझे फिर याद वो बचपन हुआ।
जरा-सी भीख तो मिल ही गयी
मगर नापाक यह दामन हुआ।
८ जून २०१५ |