अनुभूति में
सर्वत जमाल की रचनाएँ-
अंजुमन में-
आराम की सभी को है आदत
पता चलता नहीं
लिखते हैं
हर कहानी चार दिन की
होगी तेरी धूम
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हर कहानी चार दिन
की हर कहानी चार दिन की,
बस
जिंदगानी, चार दिन की बस
तज़किरा जितने बरस कर लो
नौजवानी चार दिन की, बस
एक दिन सब लौट आयेंगे
बदगुमानी चार दिन की, बस
हुक्मरां सारे मुसाफिर हैं
राजधानी चार दिन की बस
खून टपका, जम गया, तो क्या
यह निशानी चार दिन की, बस
जब हरम में बांदियाँ आयें
फिर तो रानी चार दिन की, बस
जल्द ही सैलाब फूटेगा
बेज़ुबानी चार दिन की, बस
मुल्क पर हर दिन नया खतरा
सावधानी, चार दिन की, बस
१५ नवंबर २०१० |