अनुभूति में
हरीश दरवेश की रचनाएँ-
अंजुमन में-
अंगारों से खेली हरदम
ऊब गये अखबार
क्या कहें माहौल को
मुस्कराहट हो गयी अज्ञातवासी
व्यवस्था में विषमता
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व्यवस्था में
विषमता
व्यवस्था में विषमता की महामारी से लड़ना है
मगर पहले हमें अपनी समझदारी से लड़ना है।
जरा सी देर में सेवक जरा सी देर में स्वामी
मुखौटेदार लोगों की अदाकारी से लड़ना है।
उन्हीं से कर रहे हैं जंग के ऐलान की आशा
कि जिनको रोज रोटी दाल तरकारी से लड़ना है।
दबाने पर तुला है जो हमारा इन्क़लाबी स्वर
ग़ुलामों के छिड़े उस राग-दरबारी से लड़ना है।
वरासत में बगावत ही मिली है दोस्तो हमको
हमें अंजाम तक ‘दरवेश’ दमदारी से लड़ना है।
२१ मई २०१२ |