अनुभूति में
हरीश दरवेश की रचनाएँ-
अंजुमन में-
अंगारों से खेली हरदम
ऊब गये अखबार
क्या कहें माहौल को
मुस्कराहट हो गयी अज्ञातवासी
व्यवस्था में विषमता
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ऊब गए अखबार
ऊब गये अखबार देखकर
रोजी के आसार देखकर।
सम्बन्धों को आँक रहा हूँ
आँगन की दीवार देखकर।
सपनो का सच जान लिया है
एक नहीं सौ बार देखकर।
लौट रहा हूँ उस कोठी से
ब्याह नहीं व्यापार देखकर।
पथ पर अन्जाने जीवन के
चलना होगा यार देखकर।
२१ मई २०१२ |