अनुभूति में
दिल
अंबर जोशी की रचनाएँ-
अंजुमन में-
छा गई
पानी नहीं है इतना
फलसफ़ा तेरा
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फ़लसफ़ा तेरा
ज़माने! फ़लसफ़ा तेरा समझकर क्या
करे कोई
अजब ये दौरे-हाज़िर है करे कोई भरे कोई।
ये कैसा दौर है कि पाप बढ़ते जा रहे हैं अब
ज़मीर ज़िंदा हो तो फ़िर पाप करने से डरे कोई।
मिरे तो ज़ख़्म गहरे हैं इन्हें छेड़े न कोई भी
बहुत ही दर्द होता है अगर कर दे हरे कोई।
चलन बाज़ार का है कोई भी लेता नहीं इनको
अगर खोटे ये सिक्के हैं इन्हें कर दे खरे कोई।
मुझे उस पार जाना है मुहब्बत का तक़ाज़ा है
मुझे आवाज़ देता है मिरी हद से परे कोई।
२१ फरवरी २०११
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