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अनुभूति में दिल अंबर जोशी की रचनाएँ-

अंजुमन में-
छा गई
पानी नहीं है इतना
फलसफ़ा तेरा

 

 

पानी नहीं है इतना

पानी नहीं है इतना कि दरिया कहें उसे
इतना भी कम नहीं कि क़तरा कहें उसे।

वो हादसे में बच तो गया है नसीब से
हालत नहीं है ऐसी कि ज़िंदा कहें उसे।

आँखों में वो पड़ जाए तो चुभता है ज़ोर से
चाहे भले ही आप सब तिनका कहें उसे।

इक वक़्त था जवान था दिलकश भी था बहुत
अब जिस्म ढल गया है तो बूढ़ा कहें उसे।

सागर में यूँ तो पानी बहुत है भरा मगर
ऐसा नहीं है पीके हम मीठा कहें उसे।

मैं शेर पढ़ रहा हूँ बहुत शान से सनम
पर बात तब बनेगी कि अच्छा कहें उसे।

यूँ ज़िंदगी तो जी ही रहे हैं तमाम लोग
तुम यूँ जियो कि शान से जीना कहें उसे।

आई है सुबह बनके मेरी ज़िंदगी में वो
वैसे भी लोग नाम से ‘ऊषा’ कहें उसे।

२१ फरवरी २०११

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