अनुभूति में
धनंजय कुमार की
रचनाएँ -
अंजुमन में-
थी जुबाँ पर बात क्या
दायरा अपनी सरज़मीं का
निगाहों में कोई इशारा
पाप और पुण्य
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दायरा अपनी सरज़मीं
का
दायरा अपनी सरज़मीं का बढ़ाए रखना
आसमानों पे अभी धूल उड़ाए रखना।
कुछ अंधेरे दिलों-नज़र में समाए हैं अभी
चाँद तारों को ज़रा देर जलाए रखना।
इन उजालों का अंधेरों से ही एहसास हुआ।
राज़ बुझते से दिये का भी छुपाए रखना।
इन किताबों का एक सफ़ा कहीं नहीं मिलता
बात सब कहना, मगर एक छुपाए रखना।
काम अपना ही अधूरा-सा रह गया हो अगर
तो ज़माने को ज़रा दूर बिठाए रखना।
वही आवाज़ मैं सुनने के लिए सोता हूँ
मेरी आँखों में अभी ख़्वाब जगाए रखना।
मेरा चेहरा भी खो गया तेरे चेहरे की तरह
रात है, धुंध है, बस हाथ मिलाए रखना।
३० नवंबर २००९
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